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    Sunday, May 3, 2020

    अघोरी... एक रहस्यमई दुनिया !

    आधी रात के बाद का समय काफी डरावना समय होता है। उस समय घोर अंधकार होता है। सभी लोग गहरी नींद में होते हैं। और यही समय होता है जब अघोरी तांत्रिक शमशान में जाते हैं और अपनी तंत्र क्रियाओं और अपनी साधना को अंजाम देते हैं। अघोरी नाम सुनते ही ज्यादातर लोग घबरा जाते हैं। अगर अघोरी नाम सुनने के बाद हम अपने मन में कल्पना करें तो हमारे मन में एक डरावनी छवि आएगी। वह छवि शमशान में बैठकर कोई तंत्र क्रिया कर रही होगी। लेकिन सच्चाई तो यह है कि अघोर विद्या डरावनी होती ही नहीं है बस उसका एक स्वरूप डरावना है।
    अघोर का अर्थ है 
    अ + घोर 
    मतलब जो घोर नहीं है और ना ही डरावना है बल्कि वह तो बिल्कुल सरल है। उसमें किसी प्रकार का कोई भेदभाव भी नहीं है। यह बात सुनने में जितनी आसान लगती है यह है उतनी ही कठिन क्योंकि सरल बन्ना कोई आसान चीज नहीं है। सरल बनने के लिए ही अघोरियों को कठिन से कठिन साधना करनी पड़ती है। कोई व्यक्ति तभी सरल बन सकता है जब वह अपने मन से सभी प्रकार की घृणा को बाहर निकाल दें।
    असलियत में अघोरी तो वह है जिसके अंदर सभी प्रकार के भाव जैसे प्यार, नफरत, जलन, अच्छा, बुरा सब मिट जाए। जिसके लिए सारी सृष्टि, सभी मानव एक समान हो। जो कभी किसी में फर्क ना करें। अघोरी लोग शमशान जैसे भयानक डरावनी जगह बड़े आराम से रह लेते हैं जैसे कि वह अपने घरों में रह रहे हो। जिन चीजों से समाज घृणा करता है अघोरी लोग ही है जो उसे अपना लेते हैं। कुछ लोग होते हैं जो अघोर विद्या को बुरा मानते हैं पर सच तो यह है कि यह विद्या का मूल मंत्र भी लोक कल्याण ही है। इस विद्या से व्यक्ति ऐसा बन जाता है कि वह अपने और पराए का फर्क तक भूल जाता है और लोगों के कल्याण के लिए ही अपनी विद्या का प्रयोग करता है। अगर जानकारों की मानें तो अघोरी सामाजिक गतिविधियों से अपने आप को दूर रखते हैं। वह अपना सारा ध्यान केवल अपनी साधना में ही लगाते हैं।
    अघोरियों के साधना कि एक अलग ही शाखा है जिसको नाम दिया गया है अघोरपंथ। इस साधना का एक अलग ही प्रकार का विधान है और बिल्कुल अलग विधि। ठीक उसी प्रकार जैसे कि अघोरियों का जीवन जीने का तरीका। अघोरी खाने पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं करते हैं। यह लोग गाय के मांस के अलावा बाकी सारी चीजें खा लेते हैं। अघोर तंत्र के बारे में अगर ठीक से पढ़ा जाए तो पता लगेगा कि इसमें शमशान साधना काफी जरूरी है और इसका अपने आप में काफी महत्व भी है। यही कारण है कि अघोरी अपना ज्यादातर समय श्मशान में ही बिताते हैं। शमशान में आम लोग नहीं जाते और इसी कारण से उनकी साधना में किसी प्रकार का अवरोध भी उत्पन्न नहीं होता। अघोरपंथ को भगवान शिव से जुड़ा हुआ माना जाता है।
    कहते हैं अघोरशास्त्र को भगवान शिव ने ही बनाया था। अघोरशास्त्र के गुरु अवधूत भगवान दत्तात्रेय को माना जाता है। कहते हैं दत्तात्रेय ने भगवान ब्रह्मा-विष्णु-शिव तीनों के अंश के रूप में  अवतार लिया था।

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