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    Sunday, June 28, 2020

    Viral Story: रामलीला के मंच में क्या हुआ था उस दिन ?

    साल 1880 के अक्टूबर और नवंबर यानी Diwali के आसपास की बात है। बनारस की एक रामलीला मंडली रामलीला खेलने तुलसी गांव आई हुई थी। लीला में 20-22 कलाकार थे। जो एक आदमी के घर पर ही बड़े हॉल जैसे कमरे में रुके हुए थे। वही वे लोग अपना भोजन बनाते खाते और रिहर्सल वगैरा करते रहते थे। लीला मंडली के स्वामी और निर्देशक थे 45 से 46 वर्षीय पंडित कृपाराम दुबे जी। मंडली में एक 35 वर्षीय फौजदार शर्मा नाम का भी आदमी था। वह दुबे जी के सहायक थे। फौजदार बहुत उग्र स्वभाव का था और मन का मैला प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था। रामलीला में प्रयोग में आने वाली और उपयोग में लाई जाने वाली सभी सामग्री का भी फौजदार शर्मा ही प्रबंध करता था। एक दिन रामलीला के कलाकारों का रिहर्सल चल रहा था। पंडित कृपाराम दुबे ने फौजदार को सलाह दी और कहा कि राम जिस शिव धनुष को तोड़ते हैं वह धनुष पहले की लीलाओं की तुलना में नरम होना चाहिए ताकि राम की भूमिका कर रहा 17 साल का लड़का उसे आसानी से तोड़ सके। शायद कृपाराम जी पहले की लीलाओं में यह महसूस किया था कि राम को धनुष भंग करने में कुछ कठिनाई हुई या देर लग गई। बस इस छोटी सी बात का फौजदार ने बतंगड़ बना दिया। जिसके कारण कृपाराम और फौजदार काफी कहासुनी हो गई। कृपाराम ने उसे जो खरी खोटी सुनाई उसे फौजदार ने अपना सबके सामने अपमान महसूस किया और अपनी इस अपमान का बदला लेने के लिए मन ही मन उसने एक योजना बनाई। फौजदार ना केवल कृपाराम का बल्कि उसकी रामलीला का भी मजाक कि एक तरकीब सोची।
    अगले दिन रामलीला में राम जी के द्वारा धनुष तोड़ने और सीता जी के स्वयंवर का दृश्य आयोजित किया जाना था। लीला में राम जी जिस शिव धनुष को तोड़ते थे उस धनुष को फौजदार ही तैयार करवाता था। वह मुलायम लकड़ी को मोड़ कर उस पर रंगीन कपड़ा और कागज लगाकर हल्का धनुष तैयार करवाता था। ताकि राम की भूमिका कर रहा 17 साल का लड़का आसानी से उस शिव धनुष को उठा भी सके और तोड़ भी सके। लेकिन आज की रात तो वह  कृपाराम और उसकी मंडली को सबके सामने बेइज्जत करना चाहता था। इसलिए उसने एक चाल चली। जिसकी उसने कानो कान किसी को खबर नहीं होने दी। जिनके घर मंडली रुकी थी उनसे किसी काम का बहाना लेकर लोहे का एक रोड मंगवा लिया। फिर वह पड़ोस के गांव में चला गया। वहां के एक लोहार से उसने वह लोहे का रॉड धनुष आकार में मुड़ वालि फिर किसी एकांत जगह पर जाकर उस धनुष आकार लोहे की रॉड पर रंगीन कपड़ा और कागज लपेटकर आज रात की लीला के लिए शिव धनुष तैयार कर लिया। डेरे में वापस लौटा और उसने शिव धनुष कहीं छुपा कर रख दिया। जब रात को लीला शुरू हुई तो फौजदार ने वही रंगीन कागजों से लिपटा हुआ लोहे की रॉड से बना शिव धनुष चुपचाप जाकर स्टेज पर रख दिया वहीं पास में दूसरे स्टेज पर दुबे जी हारमोनियम बजा रहे थे और दृश्य के अनुसार रामायण की चौपाई, दोहा, सोरठा गा-बजा रहे थे। फौजदार पर्दे के पीछे छिपकर तमाशा देख रहा था और काफी बेकरार था।
    समय आने पर विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम धनुष उठाने के लिए आगे आए।
    आगे बढ़कर राम ने धनुष उठाया तो चौक गया।
    पहले की लीला में तो वह इतना कठोर कभी नहीं था। फिर वह इसको अब बीच से तोड़े कैसे ?
    अभी कुछ देर पहले रावण और दूसरे दिग्गजों का यहां जो अपमान हुआ था क्या वही राम का भी होने वाला था ? राम ने डरी हुई आंखों से हारमोनियम बजा रहे कृपाराम की ओर देखा। राम से आंखें चार होते ही दुबे जी भी समझ गए कि दाल में कुछ काला है और राम बड़े संकट में है। सामने बैठे अन्य अपार दर्शक समूह बेचैनी से राम के द्वारा धनुष भंग करने की प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से कर रहे थे। ऐसे समय में पर्दा गिरना भी बड़ा बुरा ही होता यानी कि राम की कमजोरी को ही स्पष्ट रूप से पर्दे से ढकना।
    दुबे जी सच्चे मन से भगवान राम से प्रार्थना कर रहे थे और कह रहे थे "प्रभु आज मेरी लाज रख दीजिए। आपने किसी समय पर कृष्ण का रूप धरकर द्रौपदी की लाज बचाई थी। आज मेरी और तुम्हारी खुद की रामलीला की लाज रखनी पड़ेगी।"
    हारमोनियम तबले और मंजीरे के सुर में दर्शक मग्न होकर खो गए थे और पंडित कृपाराम दुबे भी खो गए थे। सच्चे हृदय से राम की भक्ति में उनका मस्तिष्क और हृदय राम के चरणों में लीन हो चुका था। उन्होंने रंगमंच के राम को नेत्रों से ही निर्देश दिया धनुष खींचो और भाव विभोर होकर गाने लगे।

    लेत चढ़ावत खैंचत गाढें, 
    काहूँ न लखा देख सबु ठाढें।।
    तेही छन राम मध्य धनुतोरा, 
    भरे भुवन धुनी घोर कठोरा।।

    तभी रंगमंच पर एक बिजली कड़कने सी हुई। अगले ही पल राम के हाथ से शिव धनुष टूट कर झूल रहा था। तालियों की गड़गड़ाहट से लीला स्थल गूंज रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि आज सच में श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया हो।
    दूसरे दिन पंडित कृपाराम दुबे और रामलीला कराने वाले मेज़बान एक दूसरे के सामने फूट-फूटकर रो रहे थे। पंडित दुबे रो-रो कर अपने प्रभु राम की लीला और महिमा का बखान कर रहे थे। वह रो इसलिए रहे थे क्योंकि अनजाने में ही सही लेकिन फौजदार के साथ पाप के भागीदार बने। जिसका पश्चाताप मरते दम तक बना रहा । उन्होंने प्रायश्चित स्वरूप न जाने कितनी ही रामायण और धार्मिक अनुष्ठान किए। फौजदार को उस रात के बाद कभी किसी ने नहीं देखा।
    तो आपने देखा दोस्तों इस बुराई की दुनिया में अगर सच्चे और साफ मन से राम का नाम लेते हैं तो चमत्कार होने में देर नहीं लगेगी। बस आपकी भक्ति और आपका प्यार दिल से राम नाम ले तो स्वयं भगवान भी आ जाएंगे आपको संकट से बचाने के लिए।
    तो जोर से बोलो
    जय श्री राम.....
    Jai Shree Ram......

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