इस समय सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का प्रकोप जारी है। इस महामारी की वजह से भारत में 25 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया था जोकि 31 मई तक जारी रहा। उसके बाद धीरे-धीरे लॉकडाउन को खोलने की प्रक्रिया जारी है। कहने का मतलब यह है कि लगभग 2 से ढाई महीने तक सब कुछ बंद था। चाहे वह मॉल हो, दुकानें हो या फिर ऑफिस और सब कुछ बंद होने के कारण लाखों लोगों की आमदनी रुक गई। दुकानें बंद थी तो दुकानदारों की कोई आमदनी नहीं, ऑफिस बंद हो गए तो नौकरी करने वाले लोगों को सैलरी भी नहीं मिली। जो लोग शहरों में नौकरी करते हैं वह लोग किराए के मकान में ही रहते हैं। दुकान किराए पर चल रही हैं। ऑफिस चाहे बड़ा हो या फिर छोटा सभी किराए की बिल्डिंगों में ही चलते हैं। और सब कुछ बंद होने के कारण एक नई समस्या लोगों के सामने आ गई और वह थी किराए के भुगतान की। इसके निजात के लिए सरकार ने भी मकान मालिको से अपील की थी कि वह अपने किरायेदारों से 3 महीने तक कोई किराया ना लें। जब सब कुछ ठीक हो जाए तो उसके बाद उसे ले सकते हैं।
लेकिन अब एक नई खबर Viral Story सामने आ रही है वह यह कि मकान मालिक किरायेदारों के साथ Rent Agreement में एक नया कॉलम या क्लॉज डलवा रहे हैं। इस क्लॉज में यही लिखा गया है की अगर आने वाले भविष्य में किसी भी कारण से लॉकडाउन होता है तो क्या-क्या किया जाएगा। उस दौरान किराएदार को कितना रेंट देना होगा। क्या किसी प्रकार की कोई छूट दी जा सकती है। यह सारी जानकारी अब किराएदार और मकान मालिकों को एक दूसरे के साथ साझा करनी पड़ेगी।
लेकिन इन सब के बारे में जानने से पहले आपको यह जानना होगा कि रेंट एग्रीमेंट होता क्या है?
जब दो लोग कानूनी तरीके से किसी भी चीज के लिए समझौता करते हैं तो उसे लीगल भाषा में एग्रीमेंट कहते हैं। इसी प्रकार अगर कोई एग्रीमेंट किसी किराएदार और प्रॉपर्टी के मालिक के बीच में लिखित और लीगल तरीके से किया गया है तो उसे रेंट एग्रीमेंट कहते हैं। इस एग्रीमेंट में उस प्रॉपर्टी से संबंधित सभी Terms and Conditions के बारे में लिखा होता है। जब दोनों पक्ष सभी टर्म और कंडीशन पर सहमत होते हैं तो दोनों इस एग्रीमेंट पर साइन करते हैं।
अगर आप किराए पर रहे हैं तो आप ने यह महसूस किया होगा कि ज्यादातर एग्रीमेंट 11 महीने के ही क्यों होते हैं?
उसका कारण यह है की अगर आप 11 महीने से ज्यादा का एग्रीमेंट बनवाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको रजिस्ट्री करानी पड़ती है। उसके लिए रजिस्ट्रेशन फीस देनी होती है और जितना रेंट होता है उसका 2% स्टैंप ड्यूटी भी देनी होती है। यही कारण है कि इन सब खर्चों से बचने के लिए 11 महीने का एग्रीमेंट बनवाया जाता है। 11 महीने के रेंट एग्रीमेंट को आप एड्रेस प्रूफ के तरीके से इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं लेकिन अगर आपका रजिस्ट्री वाला रेंट एग्रीमेंट है तो उसे एक valid document के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में एक वरिष्ठ वकील का कहना है कि अगर दो पक्ष आपसी सहमति से एग्रीमेंट साइन करते हैं तो वह उन दोनों के बीच एक प्रकार का समझौता होता है दोनों पक्ष उसने लिखी सभी बातों पर सहमत होते हैं तभी वह उस पर साइन करते हैं। उसमें अगर उदाहरण के तौर पर भविष्य में लॉकडाउन लगता है तो कम से कम किराया कितना होना चाहिए यह आप की सहमति से ही एग्रीमेंट में लिखा होगा। लेकिन अगर दोनों के बीच इसको लेकर किसी प्रकार लड़ाई या कहासुनी होती है तो दोनों पक्ष इसके लिए जिम्मेदार होंगे।
यहीं से एक और सवाल उठता है की एग्रीमेंट में लिखी शर्तों को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं या नहीं?
इस पर सुप्रीम कोर्ट की एक वरिष्ठ वकील ने बताया की इसे चुनौती दी जा सकती है। यह डिपेंड करता है एग्रीमेंट पर। अगर कोई एग्रीमेंट किसी एक पक्ष को ज्यादा फायदा या फेवर कर रहा है और दूसरे पक्ष किसी भी प्रकार का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि अगर हर कोई ऐसा ही कर रहा है, तो ऐसे में एग्रीमेंट को साइन करना मजबूरी बन जाता है। लेकिन भविष्य में आप इसे कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।
यह भी पढ़ें - जानिए असम के उस जंगल के बारे में जिसे बचाने के लिए Actors, Singers और Students सभी एक हो गए
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट का एक फैसला आया था जिसमें कहा गया कि राजधानी दिल्ली में किरायेदारों को लॉकडाउन में किराया देना होगा लेकिन अगर दोनों पक्ष सहमत हैं तो कुछ छूट दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी किराए पर छूट के लिए एक याचिका दायर की गई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा की किराएदार किराए के भुगतान के लिए मना नहीं कर सकते हैं। और उस संपत्ति का किराया देना भी जरूरी है जिसमें वह पहले से रह रहे हैं।
अगर साफ-साफ बात करें रेंट एग्रीमेंट प्रॉपर्टी के मालिक और किराएदार के बीच में एक लिखित समझौता है जिसे दोनों पक्षों को मानना पड़ता है। अगर दोनों में से किसी भी पक्ष को किसी प्रकार की आपत्ति या समस्या होती है तो वह कोर्ट जा सकता है। अब नई रेंट एग्रीमेंट में लॉकडाउन या ऐसी किसी प्रकार की चीजों को लेकर क्लोज तैयार हो रहे हैं। अगर किसी प्रकार का कोई विवाद है तो वह कोर्ट जा सकते हैं। लेकिन हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों का यही कहना है लॉकडाउन के दौरान का किराया तो किरायेदारों को देना ही पड़ेगा।
No comments:
Post a Comment