20 मार्च 2020 सुबह 5:30 बजे का समय ऐतिहासिक दिन बन गया। आखिरकार Nirbhaya के गुनहगारों को 7 साल 3 महीने 3 दिन बाद फांसी पर लटका दिया गया। आज से लगभग सवा 7 साल पहले 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ दरिंदगी हुई थी। यह सिर्फ Gangrape ही नहीं था बल्कि जो निर्भया के साथ किया गया वह कोई जानवर भी नहीं कर सकता था। 29 दिसंबर 2012 को निर्भया ने इस दुनिया को छोड़ दिया। निर्भया तो चली गई लेकिन उसकी लड़ाई जारी थी।
दोषियों में से एक दोषी अपनी छोटी उम्र का फायदा उठाकर 3 साल की जेल काट कर छूट गया। एक मुख्य आरोपी जय सिंह ने जेल में आत्महत्या कर ली थी और बचे यह चार विनय, मुकेश, अक्षय और पवन गुप्ता को एक साथ सुबह 5:30 बजे फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। ऐसा पहली बार हुआ की पूरा देश इनकी फांसी का इंतजार कर रहा था और जैसे ही फांसी हुई पूरे देश में एक खुशी की लहर दौड़ गई।
निर्भया की मां पिछले 7 साल से संघर्ष कर रही थी। उनसे बात करने पर उन्होंने बताया की आज उनकी बेटी को इंसाफ मिला है लेकिन उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। अभी इस देश में और भी दूसरी बेटियां हैं जिनके लिए वह लड़ाई लड़ेंगी। इसी के साथ उन्होंने यह भी बताया कि आज के बाद वह 20 मार्च को निर्भया दिवस के रूप में मनाना चाहेंगी। निर्भया के सवाल पर उनकी मां आशा देवी की आंखें छलक गए और उन्होंने कहा कि आज अगर निर्भया जीवित होती तो वह एक डॉक्टर की मां कहलाती लेकिन आज वह निर्भया की मां के नाम से जानी जाती है क्योंकि निर्भया शब्द सिर्फ एक नाम नहीं बन गया है अब बल्कि एक उम्मीद बन गई है जिससे ऐसे दोषियों को सजा मिल पाएगी और उन पीड़ितों को एक उम्मीद की किरण जिसके सहारे वह अपनी जंग लड़ सकेंगी।
चारों दोषियों के वकील एपी सिंह आखिरी समय तक फांसी को टालने के लिए कोशिश करते रहे। याचिकाओं पर याचिकाएं दायर होती रही, बहाने लिए जाते रहे, तीन बार डेथ वारंट भी डिले कर दिया गया लेकिन इस बार कोर्ट ने सभी दलीलों को खारिज कर दिया। सभी याचिकाओं को मान्यता ना देते हुए इस चौथे डेथ वारंट को जारी रखा। यहां तक कि आरोपियों के वकील ने रात आधी रात को भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आधी रात को ही सर्वोच्च न्यायालय बैठी और दलीलों का दौर शुरू हुआ। एपी सिंह बार-बार फांसी को गलत बताते रहे। सारे आरोप मीडिया पर, अदालत पर और राजनीति पर डालते रहे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी सारी दलीलों को खारिज करते हुए बोला कि आरोपियों के वकील ने ऐसी कोई दलील नहीं दी है जिसके कारण फांसी को टाला जा सके।
आज सारा देश 16 दिसंबर 2012 की उस रात को याद कर रहा है जिसे इतिहास के पन्नों में काले दिन के रूप में जाना जाएगा। महानगर राजधानी दिल्ली जिसको दिलवालों की दिल्ली कहा जाता है एक मासूम लड़की के गैंगरेप का, उस दरिंदगी का गवाह बनी।
मुनिरका में इन छह आरोपियों ने चलती बस में मेडिकल की स्टूडेंट का गैंगरेप किया और दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी जिसे कोई सोच भी नहीं सकता। इस दरिंदगी के बाद आरोपियों ने निर्भया और उसके दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया था। उसी रात पीड़िता को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद देश में यह बात फैली और पूरा देश निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए सड़कों पर आ गया। युवाओं का ऐसा जोश, ऐसी लहर, ऐसी जागरूकता शायद पहले कभी देखने को मिली थी।
बहुत कोशिशों के बाद भी निर्भया की हालत में सुधार नहीं हो रहा था। जिसके बाद इलाज के लिए उसे सिंगापुर भेज दिया गया। जहां 29 दिसंबर को 2012 को निर्भया जिंदगी की जंग हार गई और इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। जिंदगी की जंग तो वह नहीं जीत पाई लेकिन इंसाफ की जंग आज निर्भय के नाम है।
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