असम हमेशा ही अपने पहाड़ी क्षेत्र को लेकर भारत में एक खूबसूरत छटा बिखेरते हुए आ रहा है। इसी के साथ वहां काफी घने जंगल भी हैं। जो तरह-तरह के जीवो के लिए आश्चर्य बने हुए है। ऐसा ही एक जंगल आजकल सुर्खियों में बना हुआ है। जंगल का नाम है Dehing Patkai Wildlife Sanctuary। यह घना जंगल असम के कई जिलों तक फैला हुआ है। खासतौर से सिवसागर, तिनसुकिया और डिब्रूगढ़। यह जंगल लगभग 751 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह एक Rain Forest Reserve है। इसका मतलब यह है कि यहां पर हर साल लगभग 250- 450 सेंटीमीटर बारिश होती है।
तरह-तरह के सांप, पक्षी, बिल्ली, तितली, कछुए, छिपकली, कई सारे हाथी और कई जीव जंतुओं का बसेरा है। कई तरह की प्रजातियां यहां देखने को मिल जाती हैं। जानवरों के अलावा पेड़ पौधों के लिए भी Dehing Patkai खास जगह है। उनकी भी कई प्रजातियां यहां देखने को मिलती हैं। आसान भाषा में कहें तो यह बहुत ही खूबसूरत जंगल है।
Dehing Patkai का एक और नाम है। इसे लोग "पूर्व का ऐमेज़ॉन" भी कहते हैं। जैसे अमेजॉन के जंगल ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, दक्षिणी अमेरिका तक फैले हुए हैं। ऐसे ही यह जंगल भी काफी इलाके तक फैला हुआ है और इसीलिए इसे Amazon of North भी कहते है।
इस समय सोशल मीडिया पर इस जंगल के लिए मुहिम छिड़ी हुई है। कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी जैसे गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के छात्रों ने एक कैंपेन चला रखा है। ट्विटर पर इस समय #savedehingpatkai #save_amazon_of_east #Elephant_Reserve #Coal_India ट्रेंड कर रहे हैं।
इन छात्रों को सिंगर, एक्टर और पर्यावरण से जुड़े हुए विशेषज्ञों का खासा साथ मिल रहा है। बात यह है कि यह सभी लोग Dehing Patkai घने जंगल में होने वाली कोल माइनिंग का जमकर विरोध कर रहे हैं। उसे रोकना चाहते हैं। पर एक फैक्ट यह है की लगभग 45 साल से इस जंगल के आसपास कोयला खनन हो रहा है। लेकिन सोचने वाली बात यह है की इतने समय से माइनिंग चल रही है। विरोध आज ही क्यों हो रहा है?
असल में दी है Dehing Patkai फॉरेस्ट से बहुत भारी मात्रा में कोयला मिलता है। इसी की वजह से यह सब हो रहा है। आज तक के जाने-माने पत्रकार मनोज दत्ता तिनसुकिया से आते हैं। और इस जंगल का कुछ इलाका तिनसुकिया से जुड़ा हुआ है और यहीं से कहानी का खुलासा होता है।
दरअसल CIL (Coal India Limited) की कई यूनिट और इकाइयां हैं। उन्हीं में से एक इकाई का नाम है NECF (North Eastern Coal Fields) यह यूनिट नॉर्थ-ईस्ट के कई इलाकों से माइनिंग का काम करती है। सरकार की ओर से NECF को 1973 से 2003 तक माइनिंग की परमिशन दी गई थी। और 2003 में लीज समाप्त हो गईै।
लीज खत्म होने के बाद भी NECF ने काम नहीं रोका और खनन जारी रखा जो कि गैरकानूनी था। 2012 में CIL ने खनन के लिए दोबारा परमिशन मांगने की कोशिश की लेकिन अपील खारिज हो गई। 2019 में फिर CIL ने अपील दायर की। इसका मतलब यह हुआ की CIL माइनिंग के लिए कानूनी परमिशन चाहता था। वह भी उस जमीन के लिए जिस जमीन पर वह पिछले कई सालों से गैरकानूनी खनन कर रहा था। जब यह फाइल केंद्र पहुंची तो NBWL (National Board for Wildlife) सामने था। यह बोर्ड पर्यावरण मंत्रालय के अंदर में आता है। इस बोर्ड ने दिसंबर 2019 में CIL को 57.20 हेक्टेयर जमीन की परमिशन दे दी। लेकिन कई शर्तों के साथ। जिसमें Forest Conservation Act को तोड़ने पर सख्त एक्शन भी शामिल था।
अभी पिछले महीने NBWL की मीटिंग में 98.59 हेक्टेयर की परमिशन मांगी गई थी। जिसमें से 57.20 हेक्टेयर पर पहले से ही खनन चल रहा है। और पार्टी 41.39 हेक्टेयर नई जमीन है जिस पर कई जीव जंतु रहते हैं। काफी लंबी प्रक्रिया के बाद NBWL ने CIL को सारी जमीन की परमिशन दे दी। लेकिन जैसे ही परमिशन की बात लोगों तक पहुंची जोरदार विरोध शुरू हो गया।
अब इस विरोध में नई बात सामने आई है की असम के मुख्यमंत्री ने पर्यावरण मंत्री को इस जंगल में जाने के लिए कहा है ताकि वह वहां जाकर असल हालात देख सकें। इसी के साथ असम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट भी हरकत में आया और 16 साल से CIL जो गैरकानूनी माइनिंग कर रहा था उस पर 43.25 करोड़ का फाइन भी लगा दिया।
जंगल पेड़ पौधे हमारे पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है। इनके साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ एक गहन अपराध है। Viral Mirror टीम इसकी घोर निंदा करती है। ऐसी सभी प्रकार की Daily News और Viral News पढ़ने के लिए Viral Mirrors से जुड़े रहे।
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